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बाढ़ प्रभावित किसानों से मुआवजे में भेदभाव का आरोप, पंजाब सरकार के खिलाफ हाईकोर्ट में जंग! कर्ज माफी और SIT जांच की मांग

चंडीगढ़: पंजाब में बाढ़ से तबाह हुई फसलों और मुआवज़े के वितरण में कथित भेदभाव का गंभीर मामला अब पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट पहुँच गया है। काउंसिल ऑफ लॉयर्स के चेयरमैन एडवोकेट वासु रंजन शांडिल्य ने इस संबंध में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की है, जिस पर मुख्य न्यायाधीश की बेंच सुनवाई करेगी। याचिका में किसानों को तत्काल राहत देने, उनके कर्ज़े माफ करने और पूरे मामले की हाईकोर्ट की निगरानी में जांच कराने जैसी कई अहम मांगें की गई हैं।

एडवोकेट अभिषेक मल्होत्रा और ईशान भारद्वाज के माध्यम से दायर इस याचिका में किसानों के हितों को लेकर कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए गए हैं। किसानों के हितों की रक्षा के लिए दायर इस जनहित याचिका में कई महत्वपूर्ण मांगें शामिल हैं। इसमें प्रमुख रूप से, हाईकोर्ट की सीधी निगरानी में एक विशेष जांच दल (SIT) के गठन की मांग की गई है ताकि किसानों को जल्द से जल्द राहत मिल सके। याचिका में बाढ़ प्रभावित किसानों को तत्काल वित्तीय राहत देने के लिए उनके ट्रैक्टर और किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) लोन को पूरी तरह माफ करने का आग्रह किया गया है।

इसके साथ ही, सरकार की उस शर्त को रद्द करने की मांग है जिसके तहत 25% तक फसल नुकसान पर कोई मुआवजा नहीं दिया जाता। नुकसान का सटीक आंकलन सुनिश्चित करने के लिए गिरदावरी रिकॉर्ड को तुरंत अपडेट करने और ड्रोन सर्वे कराने पर भी जोर दिया गया है। अंत में, किसानों की शिकायतों के त्वरित समाधान के लिए एक समर्पित ऑनलाइन पोर्टल बनाने और पंजाब सरकार द्वारा प्रभावित जिलों में किए गए राहत कार्यों पर एक विस्तृत रिपोर्ट हाईकोर्ट में प्रस्तुत करने की भी मांग की गई है।

याचिकाकर्ता एडवोकेट वासु रंजन शांडिल्य ने कहा कि यह लड़ाई किसानों के मान-सम्मान और अस्तित्व की है। उन्होंने आरोप लगाया कि पंजाब सरकार ने अब तक न तो गिरदावरी के रिकॉर्ड को अपडेट किया है और न ही राहत कार्यों को लेकर कोई ठोस कदम उठाए हैं।

उन्होंने कहा, हमारी मांग है कि कोई भी किसान संकट में आकर आत्महत्या करने पर मजबूर न हो, इसलिए सभी राहत कार्य सीधे हाईकोर्ट की निगरानी में किए जाने चाहिए। शांडिल्य ने विश्वास जताया कि इस याचिका से किसानों को न्याय मिलेगा और काउंसिल ऑफ लॉयर्स निस्वार्थ भाव से उनके हितों की लड़ाई लड़ता रहेगा।

 

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Allegations of discrimination in compensation