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पति पर अत्याचार के बराबर है पत्नी का बार-बार मायके जाना, हाईकोर्ट ने पुरुषों को दिया बड़ा अधिकार

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि एक महिला का अपने पति की गलती के बिना बार-बार वैवाहिक घर को छोड़कर जाना मानसिक क्रूरता है। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की बेंच ने कहा कि विवाह आपसी साथ, समर्पण और निष्ठा से फलने-फूलने वाला रिश्ता है। दूरी और परित्याग इस बंधन को सुधार की गुंजाइश से परे तक तोड़ देता है। कोर्ट की यह टिप्पणी एक अलग रह रहे जोड़े को क्रूरता और पत्नी द्वारा छोड़े जाने के आधार पर तलाक देते समय आई।

तलाक की मांग करते हुए व्यक्ति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी असहिष्णु और अस्थिर स्वभाव की है और वह कम से कम सात बार उसे छोड़कर जा चुकी है। तलाक देने से इनकार करने वाले फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए इस व्यक्ति ने अपील दायर की थी। इसे मंजूर करते हुए कोर्ट ने कहा कि लगभग 19 सालों की अवधि के दौरान अलगाव की सात कोशिशें हुईं और हर बार तीन से 10 महीने का समय लगा।

कोर्ट ने कहा कि लंबे समय तक अलग रहने से वैवाहिक बंधन में अपूरणीय क्षति हो सकती है, जो मानसिक क्रूरता है। सहवास और वैवाहिक संबंधों को खत्म करना या उससे वंचित करना भी अत्यधिक क्रूरता का काम है। बेंच ने कहा, यह अपीलकर्ता को जहनी तौर पर परेशान करने का मामला है। जिससे वह तलाक पाने का हकदार है।

Wife visiting her maternal home again and again is equivalent to torture on husband, High Court gives big rights to men