चंडीगढ़: अदालतों में जजों को ‘माई लॉर्ड’ या ‘योर लॉर्डशिप’ जैसे औपनिवेशिक संबोधनों से पुकारने की प्रथा पर एक बार फिर बहस छिड़ गई है। ताजा मामला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का है, जहां मुख्य न्यायाधीश ने एक मामले की सुनवाई के दौरान वकील द्वारा ‘योर लॉर्डशिप’ कहने पर कड़ी आपत्ति जताई और उन्हें ऐसा करने से रोका।
‘द ट्रिब्यून’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, जब एक वकील ने सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश को ‘योर लॉर्डशिप’ कहकर संबोधित किया, तो उन्होंने तुरंत हस्तक्षेप करते हुए कहा, “नहीं, नहीं। सारे ‘लॉर्डशिप’ 1947 में ही इस भारतीय तट को छोड़कर जा चुके हैं। हम या तो ‘सर’ हैं या ‘योर ऑनर’। बस इतना ही पर्याप्त है।”
यह पहली बार नहीं है जब न्यायपालिका के भीतर से ऐसी आवाज उठी है। यह घटनाक्रम अदालती कार्यवाही से गुलामी के प्रतीकों को हटाने की चल रही लंबी बहस को रेखांकित करता है।
खास बात यह है कि पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने अप्रैल 2011 में ही एक प्रस्ताव पारित कर अपने सभी सदस्यों से जजों को ‘सर’ कहकर संबोधित करने की अपील की थी। प्रस्ताव में ‘माई लॉर्ड’ जैसे संबोधनों को “गुलामी का प्रतीक” बताते हुए इसे छोड़ने का आग्रह किया गया था और निर्देशों का पालन न करने पर कार्रवाई की चेतावनी भी दी गई थी।
यह मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय तक भी पहुंच चुका है। 2014 में एक सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने स्पष्ट किया था कि इस तरह की औपचारिकता अनिवार्य नहीं है। बेंच ने कहा था, “हमने कब कहा कि यह अनिवार्य है? आप हमें सम्मानित तरीके से बुला सकते हैं… हमें ‘लॉर्डशिप’ न कहें। हम सिर्फ इतना कहते हैं कि हमें सम्मान के साथ संबोधित करें।” इससे पहले, मार्च 2021 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के ही जस्टिस अरुण कुमार त्यागी ने भी ऑन-रिकॉर्ड यह कह चुके हैं कि उन्हें ‘माई लॉर्ड’ या ‘योर लॉर्डशिप’ कहा जाना पसंद नहीं है। इसके बावजूद, कई वकील आज भी इस पुरानी प्रथा का पालन कर रहे हैं।
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The lawyer said ‘Your Lordship’