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सिद्धू मूसेवाला की अंतिम अरदास पर उमड़ा जन सैलाब, पिता की बातें सुन फैंस हुए इमोशनल

मानसा: अंतरराष्ट्रीय स्तर के गायकों में शुमार पंजाब के नौजवान शुभदीप उर्फ सिद्धू मूसेवाला को आज अंतिम अरदास तथा भोग पर उमड़े जनसैलाब ने अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि दी। मुंबई से लेकर दूर-दूर से आये सिद्धू के चहेतों ने उनकी समाधि पर फूलमाला अर्पित कर उनके प्रति सम्मान का इजहार किया। इस मौकेे पर मानसा की अनाज मंडी में उनकी अंतिम अरदास का कार्यक्रम रखा गया। हैरानी की बात तो यह है कि वहां पैर रखने को जगह नहीं बची और लोग सड़कों पर खड़े दिखाई दिये। उनके खेतों में बनाई समाधि पर बच्चे, नौजवान, बुजुर्ग और महिलायें बड़ी संख्या में नजर आयीं और सबको यही मलाल रहा कि ऐसे विनम्र स्वभाव के भोले भाले नौजवान को मारने वाले इंसान नहीं दरिंदे ही होंगे।

इस मौके पर पंजाबी गायक, कलाकारों से लेकर राजनीतिक, सामाजिक,धार्मिक सहित भारी तादाद में लोगों ने उनके माता-पिता के साथ दुख साझा करते हुये उनका हाैंसला बढ़ाया और भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उनके पिता बलकौर सिंह तथा माता चरण कौर ने बुरे समय में साथ देने के लिये लोगों का धन्यवाद किया।

राज्य के कैबिनेट मंत्री डॉ. बलजीत कौर शुभदीप सिंह (सिद्धू मूसेवाला) के अंतिम अरदास एवं भोग में शामिल हुईं और परिवार के साथ दुख साझा किया। उन्होंने सिद्धू मूसेवाला की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। उनके साथ विधायक गुरप्रीत सिंह बनावली, नरिंदर कौर भराज, गुरमीत सिंह खुडिया और बलकार सिद्धू भी थे। डॉ कौर मुख्यमंत्री की तरफ से शोक संदेश लेकर पहुंची थी। उन्होंने पीड़ित परिवार से मुलाकात की और सिद्धू मूसेवाला को श्रद्धांजलि दी।

वह मुख्यमंत्री भगवंत मान का शोक संदेश लेकर पहुंची, जिसमें मान ने लिखा कि वह दुख की इस घड़ी में परिवार के सभी सदस्यों के साथ हैं और दिवंगत आत्मा को श्रद्धा के फूल अर्पित करते हैं। कम उम्र में होनहार पुत्र का निधन परिवार के लिए असहनीय और अकथनीय है। पंजाब, पंजाबियों और दुनिया भर में उसे चाहने वालों के लिए यह एक गहरा सदमा और एक अपूरणीय क्षति है।

उन्होंने कहा कि शुभदीप सिंह सिद्धू ने पंजाबी गायकी को ही नहीं बल्कि अपने गांव मूसा की मिट्टी की खुशबू को भी दुनिया के हर कोने तक पहुंचाया है। सिद्धू मूसेवाला ने अपनी गायकी से दुनिया भर में पंजाब का नाम रोशन किया है। खेती-बाड़ी से जुड़े रहने और अंत तक अपने माता-पिता की छाया बने रहने की उनकी अनूठी जीवन शैली ने हजारों युवाओं के दिल-दिमाग को छुआ है। ऐसे सूरमा को श्रद्धांजलि।

पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री के नामी कलाकार गुरप्रीत सिंह घुग्गी ने अंतिम अरदास के बाद कहा कि हैरानी की बात है कि नौजवान से लेकर बुजुर्ग तक की आंखों में आंसू हैं। ऐसे समय में जब शहर के लड़के विदेश भाग रहे हों,वह होनहार सूरमा बच्चा पंजाब का ब्रांड एंबेसडर तथा यूथ का आइकन बना और कनाडा छोड़ गांव में अपनी जड़ जमीन से जुडकर बड़ा उदाहारण पेश किया। दुनिया को अपने आगे झुकाने वाला जब हमारे पैरों को छूता था तो उस नौजवान पर गर्व होता था। हर कोई उसे रास्ते में रोक लेता। कितना बड़प्पन था उसमें, उसकी अच्छाई ही उसकी दुश्मन बन गयी। भगवान करे उसकी कुर्बानी रंग लाये और आगे किसी कलाकार ही नहीं किसी के साथ बुरा न हो।

अपने नौजवान बच्चे के गम में टूट चुके सिद्धू मूसेवाला के पिता बलकार सिंह ने लोगों से भावुक अपील करते हुये कहा, “कोई भी मेरे बेट के नाम फेक एकाउंट न बनाओ और कोई कहानी न डालो। यदि कुछ स्पष्ट करना होता मैं लाइव होकर बताऊंगा। किसी की बात पर विश्वास करके उसे न फैलायें।”

उन्होंने कहा कि वह अपने बेटे को इंसाफ दिलाने के लिये अंतिम क्षण तक चैन से नहीं बैठेंगे। सरकार को जांच के लिये समय दे रहे हैं। सभी को मिलकर पंजाब को इस माहौल से निकालना होगा, जहां अमन चैन और आपसी भाईचारा बना रहे। आपसी रंजिश या दुश्मनी का नामोनिशान न हो। मलाल तो इस बात का है कि उनके बेटे का कोई कसूर नहीं था,वह किसी का बुरा कभी नहीं चाहता था और न किसी के साथ बुरा किया।

उन्होंने भोग पर आये सभी क्षेत्र के भाई-बहनों का धन्यवाद करते हुये कहा,“ बेटे के लिये इंसाफ की लड़ाई जारी रहेगी। यदि उसे अपने साथ धोखा होने का लेशमात्र भी अहसास होता तो वह प्राइवेट सुरक्षा रख सकता था। मेरा बेटा संत,सहज स्वभाव का था। उसके चाहने वालों के सैलाब को देखकर कोई भी इस बात का अंदाजा लगा सकता है। ”

उन्होंने कहा,“ राजनीति में आने का उसका अपना फैसला था किसी अन्य को दोष देना ठीक नहीं। पहाड़ जैसा दुख उनकी जिंदगी में आने से अंधेरा छा गया है। मैंने जीवन भर संघर्ष किया और मेरे बेटे ने भी नीचे से उठकर बड़ा मुकाम अपने बूते हासिल किया लेकिन आज भी वह जमीन से जुड़ा था, हरेक का सम्मान करता था। मैं उसे अगले 10 साल तक जिंदा रखने का प्रयास करूंगा।”

उन्होंने रूंधे स्वर में कहा कि सिद्धू मूसेवाला घर से जाने से पहले मां के पैर छूकर काला टीका लगवा कर जाता था लेकिन 29 मई के मनहूस दिन उसकी मां गांव में किसी के यहां गयी हुई थी और पीछे से वह चला गया। अब मूसेवाला कभी नहीं लौटेगा।