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आखिर क्यों श्राद्ध में कौआ दिखना माना जाता है शुभ?, यहां जानिए सबकुछ

नई दिल्लीः भारतीय समाज में कौआ का कांव-कांव करना अच्छा नहीं माना जाता। एक तो कौवे की करकस आवाज और दूसरी ओर उसका सर्वाहारी होना लोगों को पसंद नहीं आता। शायद इसीलिए लोग कौओं को अपने आस पास आश्रय नहीं देते। लेकिन पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष यानी श्राद्ध के दौरान 15 दिन तक कौओं को काफी सम्मान के साथ देखा जाता है। पितृ पक्ष की शुरुआत 13 सितंबर से हो चुकी है, जो कि 28 सितंबर तक समाप्‍त होंगे। प‍ितरों की आत्‍मा की शांत‍ि के लिए 16 द‍िनों के श्राद्ध कर्म किये जाते हैं।

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श्राद्ध पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए पिंडदान किया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माना जाता है कि कौवा दिखना पूर्वज का प्रतीक है और पितृ पक्ष के दौरान अगर कौवा दिखता है तो उसे मेहमान के रूप में देखा जाता है। हिंदू धर्म में कौवे के अलावा गाय और श्वान को भी पितरों का प्रतीक माना जाता है। इसलिए ज्यादातर लोग पितृ पक्ष के माह में अलग-अलग तरह के भोजन बनाकर कौवे, श्वाव और गाय के ग्रास के रूप में निकालते हैं। कुछ घरों में प्रत्येक दिन पितरों को अलग तरह की वस्तुएं ग्रास के रूप में निकाली जाती हैं।

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कहा जाता है कि कौवा यदि किसी कुंवारी लड़की के ऊपर से उड़कर निकले तो समझो कि जल्द ही उसकी शादी होने वाली है। साथ यदि विवाहित महिला के ऊपर से उड़कर निकले तो माना जाता है कि उसकी गोद भरने वाली है। कौआ की चोंच में फूल पत्ती दिखे तो मनोरथ की प्राप्ति के संकेत हैं। इसी प्रकार कौवे को देखने कई अन्य भी शुभ व अशुभ विचार हैं।